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आरती

आरती करूं सतपुरुष तुम्हारी, तन मन धन जाकूं बलिहारी।।टेक।।
तुम अविनाशी देवन के देवा, भवसागर से उभारो खेवा।।१।।
आरती करहिं निरंजन देवा, तैंतीस कोटि करहिं सेवा।।२।।
आरती किन्हीं संत मुनि ध्यानी, जिन्होंने पाया पद निरबानी।।३।।
आरती किन्हीं गुरु रामानंदा, मिटी त्रृष्णा पाया परमानंदा।।४।।
आरती किन्हीं सत कबीरा, रहता सहता सकल शरीरा।।५।।
आरती किन्हीं रवि दासा, पाया पूर्ण पद प्रकाशा ।।६।।
आरती किन्हीं नामदेव छिपी, गऊ जिवाई तुम छान छापी ।।७।।
आरती किन्हीं मीरा बाई, निर्मल हो जिन मुक्ति पाई ।।८।।
आरती किन्हीं सहजो बाई, गुरु कारणे हरि ठुकराई ।।९।।
आरती किन्हीं नानक दादू, पाया परम पद प्रकाशु।।१०।।
आरती किन्हीं धन्ना जाटा, आप खेत निपाया जाका ।।११।।
आरती किन्हीं गरीब दासा, पाया अमरापुर का बासा।।१२।।
आरती किन्हीं घीसा संत, पाया पूर्णपद हुए निश्चिंत।।१३।।
आरती किन्हीं जीता जाट, मिटी चौरासी हो गए ठाठ।।१४।।
आरती किन्हीं गुरु मस्तरामा, पाया अमरा पुर का धामा ।।१५।।
सुखदेवमुनि गुरु मिले आना, बख्शी भक्ति परमात्म ज्ञाना।।१६।।
तन मन धन अर्पण किन्हा, मेहर हुई उन आत्म चिन्हा।।१७।।
प्रेम मगन होय आरती गाता, भवसागर में फिर ना आता ।।१८।।
सतपुरुष अलख अविनाशी, हमरी भी काटो जम फांसी।।१९।।
संतदास सतगुरु का चेरा, बेग छुड़ाओ दास मैं तेरा।।२०।।
“सतसाहेब जी”