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समस्त भारतीय संत समाज एक ऐसी समिति है, जो सभी संत महापुरुषों की शिक्षाओं, विचारधाराओं और उनके जीवन के आदर्शों का प्रचार-प्रसार करने हेतु समर्पित है। यह समाज आध्यात्मिक और सामाजिक सुधार की दिशा में कार्य करते हुए साम्प्रदायिक एकता, भाईचारे और सामाजिक उत्थान को बढ़ावा देता है। समिति का उद्देश्य न केवल आध्यात्मिक जागरूकता फैलाना है, बल्कि समाज की विभिन्न समस्याओं जैसे गरीबी, अशिक्षा, जातिगत भेदभाव, महिला सशक्तिकरण, और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी प्रयास करना है।
गुरु को कीजै दण्डवत, कोटि कोटि प्रणाम । कीट न जानै भृंग को, गुरु करि ले आप समान ।।१।।
गुरु गोविंद कर जानिये, रहिये शब्द समाय। मिलै तो दण्डवत बंदगी, नहिं पल पल ध्यान लगाय।।२।।
गुरु महिमा अनन्त है, अनन्त किया उपकार । लोचन अनन्त उघारिया, अनन्त दिखावन हार ।।३।।
सतगुरु मारा बाण भरि, निरखि निरखि निज ठौर । नाम अकेला रहि गया, चित्त न आवै और ।।४।।
सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक विचार । जो सतगुरु मिलता नहीं, जाता जम के द्वार ।।५।।
सतगुरु ने तो गम कही, भेद दिया अरथाय । सुरति कमल के अंतरे, निराधार पद पाय ।।६।।
गुरु नाम है गम्य का, शीष सीख ले सोय । बिनु पद बिन मरजाद नर, गुरु शीष नहिं कोय ।।७।।
मस्तराम सा सतगुरु मिल्या, बक्शा ब्रह्म उपदेश । भवसागर में डुबं था, पकड़ निकाला केश ।।८।।
गुरु सुखदेव मुनि रिझ कै, हमको बक्शा आत्मज्ञान । भौसागर में डूबूं था, आप बचाया आन ।।९।।
संतदास की अर्ज गुसांई, अपनी शरण में रखना । पल पल हो दरश तेरा, मौज़ मगन में रखना।।१०।।
तेरा ही सहारा है सतगुरु, तेरा ही सहारा है ।। टेक ।।
तुम पास हो मेरे साहिब, फिर भी मैं बिछुड़ गया हूँ।
मोह माया ने ऐसा जकड़ा, खुद से फिसल गया हूँ ।।१।।
विषय विकारों से थका हूँ, सतगुरु वैराग मुझको देना ।
तेरे प्यार का मैं प्यासा, अपना मुझे बना लेना ।।२।।
कैसे भला होगा मेरा, स्वामी मैं नहीं जानता ।।
तेरी रजा में हे सतगुरु, अपना जीवन मैं मानता ।।३।।
मोह माया में मेरे सांईं, कहीं मैं भूल ना जाऊं ।
मझधार में डुब सकूं ना, ऊंगली पकड़ तर जाऊं ।।४।।
रंग में तेरे रंग गया दाता, छोड़ दिया जग सारा ।
बन गया प्रेम का जोगी, लेकर मन का इकतारा ।।५।।
संत दास भी तेरे चरणों में, आस की ज्योत जगाए ।
दरश तेरा पाकर साहिब, हम मुक्ति पद को पांए ।।६।।
०१. ज्ञान प्रकाश (परिचय खंड)
०२. ज्ञान प्रकाश (ज्ञान खंड)
०३. ज्ञान प्रकाश (प्रकृति खंड)
०४. ज्ञान प्रकाश (कर्म खंड)
०५. ज्ञान प्रकाश (निरोग खंड)
०६. ज्ञान प्रकाश (काल खंड)
०७. ज्ञान प्रकाश (देह खंड)
०८. ज्ञान प्रकाश (माया खंड)
०९. ज्ञान प्रकाश (आत्म खंड)
१०. ज्ञान प्रकाश (भक्ति खंड)
११. ज्ञान प्रकाश (योग खंड)
१२. ज्ञान प्रकाश (मुक्ति खंड)
१३. ज्ञान प्रकाश (धर्म खंड)
१४. ज्ञान प्रकाश (परमात्म खंड)
समस्त भारतीय संत समाज की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि आज के समय में समाज में पंथवाद, जातिवाद, गद्दीवाद, डेरावाद और सम्प्रदायवाद ने अपने पैर पसार लिए हैं। हमारे पूर्वज संत-महापुरुषों ने हमें पाखंड, अंधविश्वास और आडंबर से मुक्त किया था, लेकिन आज के कुछ पाखंडी और नकली बाबाओं ने उन्हीं संत-महापुरुषों की आड़ में अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए वही अंधविश्वास और पाखंड फैलाना शुरू कर दिया है। वे भोली-भाली संगत का शोषण कर रहे हैं और समाज में नफरत और विरोध फैलाने का काम कर रहे हैं।
इसके अलावा, हम यह भी देख रहे हैं कि संतों, महात्माओं और साधुओं का वर्ग पंथ, व्यक्ति, गद्दी या डेरा विशेष तक सीमित हो गया है। कबीर पंथ, रैदासिया पंथ, नानक पंथ जैसे विभिन्न पंथों के बीच बंटवारा हो चुका है, जबकि संत-महापुरुषों का उद्देश्य कभी भी किसी धर्म, जाति या पंथ विशेष के लिए नहीं था। वे तो सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिए आये थे।
इसलिए, समाज में व्याप्त अज्ञानता और भ्रम को समाप्त करने के लिए “समस्त भारतीय संत समाज” का गठन अत्यंत आवश्यक है। यह संस्था संत-महापुरुषों की मूल और वास्तविक शिक्षाओं का प्रचार करेगी, ताकि हर व्यक्ति को सही मार्गदर्शन मिले और वह अंधविश्वास, पाखंड और भ्रम से मुक्त हो सके।
‘स्वामी संत दास जी महाराज’ एक ज्ञानी, भजनानंद, मननशील महात्मा हैं। आपजी का जन्म माता श्रीमति रामदेई रत्तेवाल जी और पिता श्री ब्रह्मदास रत्तेवाल जी के घर दिनांक २१ मई, १९७३, दिन रविवार को ब्रह्म मुहूर्त के समय सत्संगी परिवार में गांव जौली, जिला सोनीपत, प्रांत हरियाणा (भारत) में हुआ। संत- महापुरुषों की कृपा से तत्कालीन श्री महंत जितेन्द्र दास जी महाराज, खेखड़ा धाम, जिला बागपत, प्रांत उत्तर प्रदेश (भारत) द्वारा आपजी का नामकरण गर्भावस्था में ही कर दिया था। जन्म से ही आपजी का परमात्मा में अटूट विश्वास और श्रद्धा रही है। आपजी की उच्च शिक्षा गांव में ही हुई है। आपजी की शादी श्रीमति जसवंत कौर जी के साथ हुई है और संत-महापुरुषों के आशीर्वाद से आपजी को तीन पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। आपजी पर सदैव परमपिता परमात्मा की असीम कृपा रही है। पांच वर्ष की आयु में ही आपजी को सतगुरु स्वामी मस्तराम जी महाराज, गुरु गद्दी छुड़ानी धाम (गरीबदासी पंथ) से नामदान की दीक्षा मिली। पंद्रह वर्ष की आयु तक आपजी द्वारा संतमत के नियमानुसार सांसारिक शिक्षा प्राप्त की गई। तत्पश्चात सतगुरु सुखदेव मुनि जी महाराज, गुरु गद्दी खेखड़ा धाम (घीसा पंथ) द्वारा पंद्रह वर्ष की आयु में आपजी पर पुनः परमपिता जी की कृपा हुई और आपजी को पुनः नामदान की दीक्षा प्राप्त हुई। इसके पश्चात आपजी भजन- सिमरन के नित नए अनुभव प्राप्त करते चले गए। इक्कीस वर्ष की अखंड एवं असीम साधना के उपरांत आपजी को पुनः स्वामी शंकरानंद जी महाराज, डेरा संत भूरी वाला (गरीबदासी पंथ) तलवंडी धाम (पंजाब) का संग प्राप्त हुआ। सन् २००९ से २०१७ तक सतगुरु राजाराम मस्ताना जी महाराज, संस्थापक सतसंग सर्वे पंथ निस्तारा करनाल हरियाणा की चरण- शरण में रहकर सेवा और सिमरन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपजी का धार्मिक ग्रंथ एवं पुस्तकें लिखने-पढने का बहुत शौक है। आपजी एक बहुत अच्छे लेखक भी हैं। आपजी कई ग्रंथों की रचना कर रहे हैं, जिनमें से एक ग्रंथ “ज्ञान प्रकाश (ज्ञान खंड)” की रचना पूर्ण हो चुकी है। आपजी ने इस ग्रंथ का लेखन कार्य मोबाइल फोन (चलंत दूरभाष यंत्र) द्वारा किया है। आपजी का स्वभाव, व्यवहार आदि आपजी के नाम के अनुकूल है।
आध्यात्मिक उत्थान का उद्देश्य समाज में मानसिक शांति, नैतिक मूल्य और संतुलित जीवन को बढ़ावा देना है।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से मन को सशक्त बनाना और उज्जवल भविष्य का निर्माण करना।
सामाजिक जागरूकता का उद्देश्य समाज में समानता, न्याय और सामाजिक समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा देना है।
महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य महिलाओं को उनके अधिकारों, अवसरों और आत्मनिर्भरता के प्रति जागरूक करना है।
नशा मुक्ति का उद्देश्य समाज को नशे से होने वाले हानिकारक प्रभावों से बचाना और स्वस्थ जीवन की ओर प्रेरित करना है।
समुदाय के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना और स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाना।
शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ावा देने के लिए खेलों में भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
बेरोजगार युवाओं को कौशल प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाना और रोजगार के अवसर प्रदान करना।
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